Prabodhni Ekadashi occurs in the waxing phase (Shukla Paksha) in the month of Kartik. Lord Vishnu sleeps (goes in Yog-Nidra) on Dev-Shayani Ekadashi for four months and awakes on this day i.e. Dev-uthani Ekadashi (Prabodhni Ekadashi or Deothan) and goes back to his Holy abode (Vaikuntha) from Khshir Sagar. Since this ekadashi occurs in the month of Kartik, it is also known as Kartik-Ekadashi. This four months period is prohibited for any auspicious ritual like marriage etc and also known as Chaturmas. If we observe fast on this day, all the sins (even of previous birth) may get abolished. Whosoever avoid food at all on the day of Dev Uthani Ekadashi, get rid of sins of last seven births. Having the fast on Dev Uthani Ekadashi, helps in attaining liberation and gives immense benefits. The Tulsi-Shaligram Vivah also takes place a day after this Ekadashi.
Significance Of Prabodhini Ekadashi • Devotee could get enlightment (Moksh) • This Ekadashi fast gives result equivalent to Ashwamedha Yagya. • Having bath on this day is equivalent to bath at a pilgrimage. • One who observes this Ekadashi may get rid of sins of his/her last 7 births. Prabodhini Ekadashi Katha:
ब्रह्माजी बोले- हे मुनिश्रेष्ठ! अब पापों को हरने वाली पुण्य और मुक्ति देने वाली एकादशी का माहात्म्य सुनिए। पृथ्वी पर गंगा की महत्ता और समुद्रों तथा तीर्थों का प्रभाव तभी तक है जब तक कि कार्तिक की देव प्रबोधिनी एकादशी तिथि नहीं आती। मनुष्य को जो फल एक हजार अश्वमेध और एक सौ राजसूय यज्ञों से मिलता है वही प्रबोधिनी एकादशी से मिलता है। नारदजी कहने लगे कि हे पिता! एक समय भोजन करने, रात्रि को भोजन करने तथा सारे दिन उपवास करने से क्या फल मिलता है सो विस्तार से बताइए। ब्रह्माजी बोले- हे पुत्र। एक बार भोजन करने से एक जन्म और रात्रि को भोजन करने से दो जन्म तथा पूरा दिन उपवास करने से सात जन्मों के पाप नाश होते हैं। जो वस्तु त्रिलोकी में न मिल सके और दिखे भी नहीं वह हरि प्रबोधिनी एकादशी से प्राप्त हो सकती है। मेरु और मंदराचल के समान भारी पाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा अनेक जन्म में किए हुए पाप समूह क्षणभर में भस्म हो जाते हैं। जैसे रुई के बड़े ढेर को अग्नि की छोटी-सी चिंगारी पलभर में भस्म कर देती है। विधिपूर्वक थोड़ा-सा पुण्य कर्म बहुत फल देता है परंतु विधि रहित अधिक किया जाए तो भी उसका फल कुछ नहीं मिलता। संध्या न करने वाले, नास्तिक, वेद निंदक, धर्मशास्त्र को दूषित करने वाले, पापकर्मों में सदैव रत रहने वाले, धोखा देने वाले ब्राह्मण और शूद्र, ये सब चांडाल के समान हैं। जो गुरु और ब्राह्मणों से अहंकारयुक्त बात करता है वह भी धन और संतान से हीन होता है। भ्रष्टाचार करने वाला, चांडाली से भोग करने वाला, दुष्ट की सेवा करने वाला और जो नीच मनुष्य की सेवा करते हैं या संगति करते हैं, ये सब पाप हरि प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस एकादशी के व्रत को करने का संकल्प मात्र करते हैं उनके सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो इस दिन रात्रि जागरण करते हैं उनकी आने वाली दस हजार पीढि़याँ स्वर्ग को जाती हैं। नरक के दु:खों से छूटकर प्रसन्नता के साथ सुसज्जित होकर वे विष्णुलोक को जाते हैं। ब्रह्महत्यादि महान पाप भी इस व्रत के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। जो फल समस्त तीर्थों में स्नान करने, गौ, स्वर्ण और भूमि का दान करने से होता है, वही फल इस एकादशी की रात्रि को जागरण से मिलता है।
हे मुनिशार्दूल। इस संसार में उसी मनुष्य का जीवन सफल है जिसने हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत किया है। वही ज्ञानी तपस्वी और जितेंद्रीय है तथा उसी को भोग एवं मोक्ष मिलता है जिसने इस एकादशी का व्रत किया है। वह विष्णु को अत्यंत प्रिय, मोक्ष के द्वार को बताने वाली और उसके तत्व का ज्ञान देने वाली है। मन, कर्म, वचन तीनों प्रकार के पाप इस रात्रि को जागरण से नष्ट हो जाते हैं। इस दिन जो मनुष्य भगवान की प्रसन्नता के लिए स्नान, दान, तप और यज्ञादि करते हैं, वे अक्षय पुण्य को प्राप्त होते हैं। प्रबोधिनी एकादशी के दिन व्रत करने से मनुष्य के बाल, यौवन और वृद्धावस्था में किए समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन रात्रि जागरण का फल चंद्र, सूर्य ग्रहण के समय स्नान करने से हजार गुना अधिक होता है। अन्य कोई पुण्य इसके आगे व्यर्थ हैं। जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते उनके अन्य पुण्य भी व्यर्थ ही हैं। अत: हे नारद! तुम्हें भी विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए। जो कार्तिक मास में धर्मपारायण होकर अन्न नहीं खाते उन्हें चांद्रायण व्रत का फल प्राप्त होता है। इस मास में भगवान दानादि से जितने प्रसन्न नहीं होते जितने शास्त्रों में लिखी कथाओं के सुनने से होते हैं। कार्तिक मास में जो भगवान विष्णु की कथा का एक या आधा श्लोक भी पढ़ते, सुनने या सुनाते हैं उनको भी एक सौ गायों के दान के बराबर फल मिलता है। अत: अन्य सब कर्मों को छोड़कर कार्तिक मास में मेरे सन्मुख बैठकर कथा पढ़नी या सुननी चाहिए। जो कल्याण के लिए इस मास में हरि कथा कहते हैं वे सारे कुटुम्ब का क्षण मात्र में उद्धार कर देते हैं। शास्त्रों की कथा कहने-सुनने से दस हजार यज्ञों का फल मिलता है। जो नियमपूर्वक हरिकथा सुनते हैं वे एक हजार गोदान का फल पाते हैं। विष्णु के जागने के समय जो भगवान की कथा सुनते हैं वे सातों द्वीपों समेत पृथ्वी के दान करने का फल पाते हैं। कथा सुनकर वाचक को जो मनुष्य सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देते हैं उनको सनातन लोक मिलता है।
~~~ॐ नमो भगवते वासुदेवाय~~~
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