श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर चारों तरफ उत्साह बना हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन की तैयारियां पूरे देश में चल रही हैं। इस बार श्रीकृष्ण की 5247वीं जयंती है। ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात में ठीक 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हर साल रक्षा बंधन के बाद मनाई जाती है। हर साल की तरह इस बार भी यह असमंजस हो गया है। दरअसल, इस बार कृष्ण जन्माष्टमी दो दिन यानी कि 11 और 12 अगस्त को पड़ रही है। एक बात यहां समझने की है कि हिंदू धर्म में दो तरह की तिथि को लोग मानते है कुछ लोग उदया तिथी को मानते है और उसके अनुसार व्रत करते हैं। दूसरी तरफ कुछ लोग उदया तिथि को नहीं मानते हैं।निर्णय सिंधु के अनुसार अष्टमी व्यापिनी तिथि में ही जन्माष्टमी का पर्व मनाना शास्त्र सम्मत है। ऐसे में 12 अगस्त को जन्मोत्सव मनाना श्रेष्ठ है।
जन्माष्टमी के दिन निशिता पूजा का समय : 00:05 to 00:48
मुहूर्त की अवधि: 43 मिनट
जन्माष्टमी में मध्यरात्रि का क्षण : 24:26+
13 अगस्त को, पारण का समय : 05:49 सूर्योदय के बाद
कंस एक बहुत ही दुराचारी राजा था. वह अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था. लेकिन अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह करता था. कंस ने देवकी का विवाह यदुवंशी राजकुमार वसुदेव से कर दिया. विवाह के बाद यह आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान कंस का संहार करेगी. यह सुनकर कंस ने बहन को मारने के लिए तलवार निकाल ली. वसुदेव ने उसे शांत किया और वादा किया कि वे अपने सारे पुत्र उसे सौंप दिया करेंगे.
कंस ने दोनों को कैद कर लिया और कारागार में डाल दिया. देवकी ने एक के बाद एक 7 संतानों को जन्म दिया और कंस ने उन सभी की हत्या कर दी. 7वें गर्भ में श्रीहरि के अंशरूप श्रीशेष (अनंत) ने प्रवेश किया था. कंस उसे भी मार डालेगा, ऐसा सोचकर भगवान ने योगमाया से देवकी का गर्भ ब्रजनिवासिनी वसुदेव की पत्नी रोहिणी के उदर में रखवा दिया. देवकी का गर्भपात हो गया.
8वें पुत्र के रूप में श्रीहरि ने जन्म लिया. यह अवतार उन्होंने भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आधी रात में लिया था. इसलिए तभी से इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा.