Paush Putrda Ekadashi occurs in the waxing phase (Shukla Paksha) in the month of Paush. We can get rid of all our sins if we observe this fast. Whosoever avoids food/water at all on the day of this Ekadashi, gets blessed from Lord Vishnu. Having the fast on this Ekadashi, helps in attaining liberation and a good son.
Ekadashi Tithi Starts
03:06 AM, Jan 06
Ekadashi Tithi Ends
04:02 AM, Jan 07
Please open your Fast before 10:05 AM
~~~ॐ नमो भगवते वासुदेवाय~~~
एकादशी व्रत को शास्त्रों एवं पुराणों में काफी महत्व दिया गया है। यह व्रत जगपति जग्दीश्वर भगवान विष्णु और उनकी योगमाया को समर्पित है। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करते हैं उनका लकिक और पारलकिक जीवन संवर जाता है। यह व्रत रखने वाला धरती पर भी सुख पाता हैं और जब आत्मा देह का त्याग करती है तो उसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होता है।
जो व्यक्ति वर्ष मे आने वाली सभी एकादशी का व्रत नहीं रखते हैं वे चाहें तो अपनी विशेष कामना की पूर्ति के लिए कामना से सम्बन्धित व्रत भी रख सकते हैं जैसा मोक्ष की इच्छा रखने वाले मोक्षदा एकादशी कर सकते हैं, पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी।
पद्म पुराण में वर्णित है कि धर्मराज युधिष्ठिर श्री कृष्ण से एकादशी की कथा एवं महात्मय का रस पान कर रहे थे। उस समय उन्होंने भगवान से पूछा कि मधुसूदन पष शुक्ल एकादशी के विषय में मुझे ज्ञान प्रदान कीजिए। तब श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं। पष शुक्ल एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं।
इस व्रत को विश्वदेव के कहने पर भद्रावती के राजा सुकेतु ने किया था। राजा सुकेतु प्रजा पालक और धर्मपरायण राजा थे। उनके राज्य में सभी जीव निर्भय एवं आन्नद से रहते थे, लेकिन राजा और रानी स्वयं बहुत ही दुखी रहते थे। उनके दु:ख का एक मात्र कारण पुत्र हीन होना था। राजा हर समय यह सोचता कि मेरे बाद मेरे वंश का अंत हो जाएगा। पुत्र के हाथों मुखाग्नि नहीं मिलने से हमें मुक्ति नहीं मिलेगी। ऐसी कई बातें सोच सोच कर राजा परेशान रहता था। एक दिन दु:खी होकर राजा सुकेतु आत्म हत्या के उद्देश्य से जंगल की ओर निकल गया। संयोगवश वहां उनकी मुलाकात ऋषि विश्वदेव से हुई।
राजा ने अपना दु:ख विश्वदेव को बताया। राजा की दु:ख भरी बातें सुनकर विश्वदेव ने कहा राजन आप पष शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कीजिए, इससे आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने ऋषि की सलाह मानकर व्रत किया और कुछ दिनों के पश्चात रानी गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया। राजकुमार बहुत ही प्रतिभावान और गुणवान हुआ वह अपने पिता के समान प्रजापालक और धर्मपरायण राजा हुआ।
श्री कृष्ण कहते हैं जो इस व्रत का पालन करता है उसे गुणवान और योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। यह पुत्र अपने पिता एवं कुल की मर्यादा को बढ़ाने वाला एवं मुक्ति दिलाने वाला होता है।
पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो व्रत रखना चाहते हैं उन्हें दशमी को एक बार भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन स्नानादि के पश्चात गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में व्रत रखने वाले को नर्जल रहना चाहिए। अगर व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि को यजमान को भोजन करवाकर उचित दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद लें तत्पश्चात भोजन करें।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो यह एकादशी का व्रत रख रहे हैं उन्हें अपने जीवनसाथी के साथ इस ब्रत का अनुष्ठान करना चाहिए इससे अधिक पुण्य प्राप्त होता है.
Know more about the Ekadashi Vrat